Wednesday, April 16, 2008

लोकसभा सीट के साथ ही भाजपा ने इज्जत भी गंवाई


‘यूपी अब गुजरात बनेगा’
‘आजमगढ़ शुरुआत करेगा’
न तो यूपी गुजरात बनना था और न बना।
आजमगढ़ से शुरुआत की भाजपा की मंशा जमींदोज हो गई। राजनाथ सिंह का चुनाव जीतने के मापदंडों पर खरा प्रत्याशी रमाकांत यादव फिर एक बार बसपा के अकबर अहमद डंपी से हार गया। डंपी ने इससे पहले भी बसपा के ही टिकट पर रमाकांत यादव को हराया था। ये अलग बात है कि 1998 के लोकसभा चुनाव में रमाकांत सपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे।

उत्तर प्रदेश में भाजपा की हालत किसी गंभीर रोग से ग्रसित मरीज के लिए दी जाने वाली आखिरी दवा के रिएक्शन (उल्टा असर) कर जाने जैसी हो गई है। राजनाथ सिंह ने कैडर, कार्यकर्ताओं को दरकिनारकर चुनाव एक लोकसभा सीट जीतने के लिए रमाकांत जैसे दागी को टिकट दिया लेकिन, फॉर्मूला फ्लॉप हो गया। और, 1998 में डंपी के हाथों रमाकांत की हार भले ही आजमगढ़ में रमाकांत के आतंक से पीड़ित जनता की प्रतिक्रिया थी। लेकिन, 2008 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े रमाकांत की हार पूरी तरह से भाजपा की साख गंवाने वाली हार है।

1998 में डंपी के चर्चित नारे – आजाद भारत में दो नेशनल लेवल के गुंडे पैदा हुए, एक संजय गांधी-जो अब नहीं हैं और दूसरा अकबर अहमद डंपी, ये रमाकांत यादव तो लोकल लुच्चा है- ने डंपी को लोकसभा में पहुंचा दिया। और, इसके ठीक उलट भाजपा, एक चर्चित नारा - ‘यूपी अब गुजरात बनेगा’ ‘आजमगढ़ शुरुआत करेगा’- और, रमाकांत के हाथों में कमल देने के बावजूद कीचड़ में धंसती ही जा रही है।


रमाकांत को पार्टी टिकट देने का विरोध भाजपा में इतना था कि पार्टी के कद्दावर नेता कल्याण सिंह ने आंख में तकलीफ के बहाने प्रचार से किनारा कर लिया। उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार में वरिष्ठ मंत्री रहे एक भाजपा नेता ने कहा कि रमाकांत को पार्टी प्रत्याशी बनाकर भाजपा ने प्रदेश में रही-सही साख भी खो दी है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले तक पार्टी के ही खिलाफ बिगुल बजाने वाले योगी आदित्यनाथ की हिंदू युवा वाहिनी रमाकांत यादव के लिए खून बहाने को भी तैयार थी, पसीना भी जमकर बहाया लेकिन, सब बेकार गया। आजमगढ़ में हिंदुओं को तो भाजपा नहीं जगा पाई। हां, भाजपा के बेतुके नारे ने मुसलमानों को अकबर अहमद डंपी के लिए एक कर दिया और रमाकांत के आतंक के मारे हिंदुओं को भी डंपी ही बेहतर नजर आया। भाजपा का चुनाव चिन्ह भी उन्हें भरोसा नहीं दिला पाया।

अब पता नहीं कहां रह गया होगा पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह का चुनाव जीतने का फॉर्मूला। उन्हें इस बात से भी कतई परहेज नहीं रह गया था कि पार्टी में आने वाला अपराधी है या नहीं।चुनाव प्रचार के समय रमाकांत जैसे माफिया के पक्ष में राजनाथ सिंह पता नहीं कैसे ये तर्क दे रहे थे कि रमाकांत को जघन्य अपराधियों की श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सकता।

दरअसल, इससे पहले आजमगढ़ सीट से रमाकांत का रिकॉर्ड देखकर ही राजनाथ सिंह और पार्टी के दूसरे नेता जीत के मापदंडों का हवाला देकर रमाकांत को टिकट देने की वकालत कर ले रहे थे। क्योंकि, इससे पहले 1996, 1999 और 2004 में रमाकांत आजमगढ़ की ही लोकसभा सीट से जीतकर संसद में पहुंच चुके हैं। ये अलग बात है कि 1996 में मुलायम की साइकिल से संसद पहुंचने वाले रमाकांत 2004 में मायावती के साथ हाथी पर सवार हो चुके थे। और, अब 2008 के उपचुनाव में रमाकांत यादव कमल हाथ में लेकर घूमने लगे। 1998 में भी अकबर अहमद डंपी ने उन्हें बसपा के ही टिकट पर हराया था और 2008 में फिर हरा दिया। भाजपा भारतीय राजनीति के कीचड़ में कमल खिलने का दावा करती आ रही थी। अब हाल ये है कि कीचड़ में कमल खिलने के साथ पत्तियों पर भी कीचड़ चारों तरफ से लिपटता जा रहा है। अब सवाल ये है कि कीचड़ के दलदल में धंसती जा रही भाजपा क्या 2009 में होने वाला लोकसभा चुनाव भी इन्हीं मापदंडों पर लड़ेगी।

Monday, April 7, 2008

‘बाबा लोग’ को ‘बड़का लोग’ के साथ मौका मिल ही गया

राहुल के डिस्कवर इंडिया कैंपेन में उन्हें कुछ मिला हो या न मिला हो। विरासत में कांग्रेसी राजनीति के खासमखास परिवारों के दो ‘बाबा लोगों’ को आखिर ‘बड़का लोगों’ की राजनीति में जगह मिल ही गई। ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद को चुनावी साल के पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिल गई है। चुनावों को ध्यान में रखकर कुछेक और छोटे-छोटे मंत्रिमंडलीय परिवर्तन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मैडम सोनिया के इशारे पर किए लेकिन, खास बदलाव यही दोनों हैं।

सोनिया गांधी, राहुल को ठीक उसी तरह से गद्दी संभालने के लिए तैयार कर रही हैं। जैसे, महाराजा-महारानी युवराज को गद्दी के लायक बनाते थे। राजशाही और लोकतंत्र में फर्क सिर्फ इतना ही है कि तब 14 साल का युवराज भी खास दरबारियों के भरोसे गद्दी संभाल लेता था। अब, लोकतंत्र में कम से कम 25 साल की उम्र तो होनी ही चाहिए। और, दरबारियों से ज्यादा हैसियत हासिल करनी ही होती है। ये दिखाता है कि जो, वो कह रहा है वो किसी भी वरिष्ठ दरबारी से ज्यादा सुना जा रहा है। वो, काम सोनिया ने राहुल के लिए धीरे-धीरे पूरा कर दिया है।

राहुल ने डिस्कवर इंडिया कैंपेन में कहा कि देश की राजनीति में युवाओं को कम मौका मिल रहा है। फिर जब उन्होंने अपनी पार्टी कांग्रेस पर भी यही आरोप लगाया तो, लोगों को लगा कि भारतीय राजनीति में गजब का ईमानदार नेता सामने आ रहा है। लेकिन, ये ईमानदारी कम थी और राजनीति ज्यादा। इसका अंदाजा इससे साफ लग जाता है कि मंत्रिमंडल में जो परिवर्तन कए गिए हैं वो, परिवर्तन कहीं से भी चुनाव को बहुत प्रभावित नहीं करेंगे। हां, राहुल के युवाओं को मौका न दिए जाने की बात उठाने पर दो युवाओं को मौका दे दिया गया। पहले राहुल के साथ के लिए राष्ट्रीय कांग्रेस में खानदानी कांग्रेसियों के घर के बच्चों को एक साथ मौका दिया गया था।

मीडिया में भले ही ये बात कही जा रही हो कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में आधार बढ़ाने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद को केंद्रीय राज्य मंत्री बनाया गया है। लेकिन, उत्तर प्रदेश की राजनीति को थोड़ा भी जानने वाला ये बात अच्छे से जानता है कि जितिन प्रसाद को कितने ब्राह्मण अपना नेता मानते हैं और ग्वालियर से बाहर ज्योतिरादित्य की कितनी ताकत है। कुल मिलाकर राहुल बिना प्रधानमंत्री बने ही मंत्रिमंडल का फैसला करने लगे हैं। तो, कांग्रेस की ओर से अगले चुनाव में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का नाम घोषित करने की जरूरत अब भी है क्या। क्योंकि, त्याग की प्रतिमूर्ति सोनिया गांधी दुबारा विदेशी मूल का मुद्दा तो विरोधियों को देना भी नहीं चाहेंगी। त्यागी सोनिया ने ये भी बता दिया कि राहुल ने मंत्री बनने से इनकार कर दिया है।