Thursday, November 15, 2007

बौराए बुद्धदेव से कौन बचाएगा बंगाल को

नंदीग्राम में हालात इतने खराब हो गए हैं कि लोगों को अपनी जान बचाने के लिए राहत शिविरों में शरण लेनी पड़ रही है। सबसे ज्यादा हैरानी की बात तो ये है कि सरकारी स्कूलों में चल रहे इन राहत शिविरों में ज्यादातर वो मुसलमान हैं जो, अब तक सीपीएम का वोटबैंक माने जाते रहे हैं। महीने भर से करीब 5,000 से ज्यादा लोग अपने घरों को छोड़कर राहत शिविरों में डरे सहमे पड़े हुए हैं।

5-7 साल के बच्चों को सीपीएम कार्यकर्ता उनकी रैलियों में शामिल न होने पर पीट रहे हैं। 7 साल की अमीना खातून को 20 दिन पहले उस समय घर छोड़ना पड़ा जब उसके गांव पर सीपीएम कैडर ने गोली, बमों के साथ हमला कर दिया। इस गांव में तृणमूल कांग्रेस समर्थित भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी का दबदबा था। इसे हटाने के लिए सीपीएम कैडर ने गांव को बरबाद कर दिया। लोग जान बचाकर राहत शिविरों में भाग गए।

बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और प्रकाश करात तो बेशर्मी की सारी हदें पार कर गए हैं। वो कह रहे हैं सीपीएम कार्यकर्ताओं को उनके घर नहीं जाने दिया जा रहा था। इसलिए सीपीएम कैडर को हथियार उठाना पड़ा। बुद्धदेव इतने पर ही नहीं माने। वो कह रहे हैं कि यहां हुई हिंसा के लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है। केंद्र से बार-बार सीआरपीएफ मांगने के बाद भी समय से सुरक्षा बल के जवान नहीं पहुंचे। इसीलिए नंदीग्राम में इतनी हिंसा हुई।

बुद्धदेव को शर्म नहीं आती जब पूरा देश ये देख रहा है कि नंदीग्राम और आसपास के गांवों में सीआरपीएफ के जवानों को हथियारबंद सीपीएम कैडर और बंगाल की पुलिस घुसने ही नहीं दे रही है। और, अगर बुद्धदेव के बयान पर भरोसा करें तो, क्या वो ये मान रहे हैं कि बंगाल में सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। फिर ऐसी सरकार के बने रहने का क्या तुक है। चुनी हुई राज्य सरकारों के तख्तापलट के लिए छोटी-छोटी बातों पर राष्ट्रपति शासन का इस्तेमाल करने वाली कांग्रेसी सरकार क्यों कान में तेल डालकर बैठी हुई है।

साफ है कांग्रेस और लेफ्ट के बीच तू मेरी गलती को छिपा मैं तेरी गलती को अच्छाई में बदलता हूं, वाला फॉर्मूला चल रहा है। यानी दलालों की सरकार हमारे ऊपर राज कर रही है।

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